कोरोना ड्यूटी में प्राण गंवाने वाले पुलिस जवानों को भी मिले शहीद का दर्जा - प्रेम आनंदकर
हर मौसम में बखूबी फर्ज निभा रहे पुलिस वालों को सलाम
संविदा व ठेके पर काम करने वाले लोगों के लिए भी हो पैकेज
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
हमारे देश का जवान चाहे कोई भी हो। जब वह किसी विपरीत परिस्थिति में अपनी सेवाएं देते हुए प्राण न्यौछावर कर देते हैं, तो उन्हें शहीद का दर्जा मिलना ही चाहिए। हालांकि राजस्थान सरकार ने कोरोना ड्यूटी के दौरान मरने वाले सरकारी कार्मिकों को 50 लाख रूपए देने की घोषणा की है, जो सराहनीय है। सीमा पर शहीद होने वाले जवानों को भी बड़ी आर्थिक मदद देने के साथ विशेष पैकेज दिए जाते हैं। इसी तरह हमारे पुलिस के जवानों को भी किसी भी विपरीत परिस्थिति में जान गंवाने पर आर्थिक मदद के साथ विशेष पैकेज दिए जाने चाहिए। चाहे वह जवान किसी उपद्रव, हिंसा के शिकार हों या कोरोना संक्रमण के। ऐसे ही पैकेज पुलिस जवानों के अलावा उन सरकारी कारिंदों को भी दिए जाने चाहिए, जो कोरोनाकाल के दौरान फ्रंटलाइन वाॅरियर्स बनकर अपनी जान की परवाह किए बिना फर्ज मुस्तैदी से निभा रहे हैं। हाल ही में अजमेर जिले में अरांई थाने के हैड कांस्टेबल मदनसिंह बैरवा का कोरोना ड्यूटी के दौरान असमय निधन हो गया। सरकार द्वारा बड़ी आर्थिक मदद देना अच्छी बात है, लेकिन यह भी शाश्वत सत्य है कि धन से ना तो किसी महिला का सुहाग खरीदा जा सकता है, ना बूढ़े माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी का सहारा बना जा सकता है, ना छोटे-छोटे बच्चों को पिता का साया मिल सकता है, ना बहन को भाई और ना ही भाई को भाई मिल सकता है। जब किसी परिवार में एक कमाने वाला सदस्य असमय छोड़कर चला जाता है, तो उस परिवार पर क्या गुजरती है, कल्पना करना भी मुश्किल है। सोच कर ही दिल और दिमाग हिल जाते हैं। इसलिए सरकार को अन्य जवानों की तरह पुलिस कार्मिकों और अन्य कार्मिकों को कोरोना के दौरान ड्यूटी करते हुए मरने पर शहीद का दर्जा देकर उनके लिए विशेष पैकेज की व्यवस्था करनी चाहिए। विशेष पैकेज की व्यवस्था होने से ऐसे परिवार अपना गुजर-बसर आसानी से कर सकते हैं। पैकेज वही हो सकता है, जो किसी जवान के शहीद होने पर दिया जाता है। इसी प्रकार सरकारी कार्यालयों में संविंदा या ठेके पर काम करने वाले श्रमिकों, कम्प्यूटर आॅपरेटरों, सफाई कर्मचारियों, लाइनमैनों, तकनीशियनों आदि को भी कोरोना ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर विशेष पैकेज देने के साथ-साथ उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए। चूंकि अब इतनी भर्तियां नहीं निकलती हैं, जिससे हजारों बेरोजगारों को सरकारी नौकरियां मिल सकें। ऐसे में यह लोग सरकारी कार्यालयों में संविदा और ठेके पर काम रह अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। नगर परिषद, नगर पालिका, नगर निगम, जिला प्रशासन, विभिन्न बोर्डों और निगमों में हजारों युवा संविदा और ठेके पर काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार के नियमों व आदेशों के तहत अनिवार्य सेवा में आने के कारण कोरोनाकाल के दौरान चल रहे लाॅकडाउन में भी नियमित रूप से ड्यूटी कर रहे हैं। ड्यूटी ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि सरकार द्वारा समय-समय पर मांगी जाने वाली जानकारियों देने और लोगों की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए कई-कई बार देर शाम, देर रात तक काम करके घर लौटते हैं और शनिवार व रविवार को अवकाश होने के बावजूद ड्यूटी देते हैं।
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