सरकार पानी-बिजली के बिल और स्कूल फीस माफ कर दो - प्रेम आनंदकर
लाॅकडाउन बढ़ाना अच्छा कदम, पर जनता की पीड़ा भी हरो
लाॅकडाउन में व्यापार-कारोबार, सब काम-धंधा है ठप
लोग अपने परिवार को पालें या बिल व फीस भरें
मध्यम वर्ग व निचले तबकों के सामने भारी संकट
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
कोरोना महामारी में भले ही संक्रमण दर का ग्राफ कम गिरा हो, लेकिन मृत्यु दर कम नहीं हो पा रही है। संक्रमण फैलने का खतरा बना हुआ है। कोरोना गांवों में भी घुस गया है। अब बच्चों में कोविड पोस्ट की नई बीमारी भी दस्तक दे रही है। ब्लैक फंगस पहले ही आकर हमारी नींद उड़ा चुका है। ऐसे में राजस्थान सरकार ने त्रिस्तरीय जन अनुशासन लाॅकडाउन 24 मई से बढ़ाकर 8 जून तक कर दिया है। कोरोना संक्रमण की कड़ी तोड़ने के लिए सरकार का यह कदम लाजिमी है, क्योंकि इसके बिना कोरोना पर काबू पाना, संक्रमण का ग्राफ गिराना और मृत्यु दर कम करना संभव नहीं है। सरकार के इस फैसले का ना केवल स्वागत किया जाना चाहिए, बल्कि लाॅकडाउन की पूरी तरह पालना भी की जानी चाहिए, क्योंकि यह जीवन है, तो हम हैं। हम जिंदा रहे, तो नाते-रिश्तेदारी खूब निभा लेंगे, शादी-ब्याह, सगाई, जन्मदिन समारोह में खूब चले जाएंगे। हमारे अपने कुछ रिश्तेदारों के यहां गमी होने पर शोक व्यक्त करने भी तभी जा पाएंगे, जब जिंदा रहेंगे। भगवान ना करे, अब किसी भी घर में यह दुखद घड़ी आए, सभी लोग और उनके परिवारजन स्वस्थ्य रहें। लेकिन सवाल यह है कि यह तब ही संभव है, जब पहले हम अपने आप पर कंट्रोल करेंगे। यह तो हुई हमारी बात, लेकिन अब बाकी बातें सरकार से। लाॅकडाउन लगाना सरकार की मजबूरी है, इसमें कोई दोराय नहीं है, लेकिन सरकार को लाॅकडाउन की अवधि के पानी-बिजली के बिल पूरी तरह माफ कर देने चाहिए। सुना है कि सरकार ने दो माह के पानी-बिजली के बिल स्थगित कर दिए हैं, इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं, लेकिन इतना तय है कि पानी-बिजली के विभाग हर माह बिल भेज रहे हैं। बिल में साफ चेतावनी लिखी होती है कि यदि नियत तारीख तक बिल जमा नहीं कराया तो कनेक्शन काट दिया जाएगा। अब सोचनीय प्रश्न यह है कि जो व्यापारी पिछले ढाई-तीन माह से दुकान नहीं खोल पा रहे हैं, व्यापार-कारोबार पूरी तरह चैपट है, हाथ ठेला चलाकर और बोझा उठाकर हमाली करने वाले, जूती गांठने या जूते-चप्पल ठीक करने वाले, सड़कों पर बैठकर सामान बेचने वाले और "रोज कुआं खोदकर रोज पानी पीने" वाले अन्य सभी मजदूर घर बैठे हैं, ऐसे में वह कैसे बिल जमा कराएंगे। यदि दो माह के लिए बिल स्थगित कर दिए, तो उससे क्या होगा। दो माह बाद इन लोगों पर एकसाथ आर्थिक बोझ पड़ेगा। ऐसे में यह लोग अपनी बिगड़ी आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाकर परिवार का गुजर-बसर करेंगे या एकसाथ बिल भरेंगे। यही नहीं बैंकों ने भी लोन की किश्त वसूलना बंद नहीं किया है। इधर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने प्राइवेट स्कूल संचालकों को "हाथी" बना दिया है। यह लोग अभिभावकों से फीस जमा कराने का तकाजा कर रहे हैं। समझ में नहीं आता है कि मध्यम वर्ग व निचले तबके के लोग एकसाथ इतनी फीस कहां से जमा कराएंगे। इस स्थिति में सरकार को सभी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की फीस सरकारी खजाने से जमा करानी चाहिए। माना कि सरकार अपने खजाने का सारा पैसा कोरोना से जूझने में लगा रही है, लेकिन आमजन का संकट दूर करने के लिए वह बड़े-बड़े धनपतियों, अरबों का कारोबार करने वालों से सहयोग लेने के साथ-साथ अपने मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, बोर्डों व निगमों के अध्यक्षों को एक-एक साल के वेतन-भत्ते सभी सुख-सुविधाओं पर खर्च होने वाली राशि मुख्यमंत्री सहायता कोष में जमा कराने के लिए कह सकती है। वैसे भी अधिकांश मंत्री, विधायक, सांसद और राजनीतिक लाभ के पदों पर बैठे लोग धनाढ्य हैं। यदि वे एक-एक साल के वेतन-भत्ते सरकारी खजाने में जमा करा भी दें, तो भी उनकी आर्थिक सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। भले ही सरकार राजनेताओं से कहे या नहीं, लेकिन इन्हें खुद ही पहल कर जनता का दिल जीतना चाहिए। "जनसेवा" करने के नाम पर राजनीति में आए इन नेताओं के लिए जनसेवा करने का इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता है।
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