दुख की घड़ी में हम भी साथ खड़े हों - प्रेम आनंदकर
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फाइल फोटो |
हम पत्रकार ही नहीं, हर नौकरी-पेशा वाले हस्तिनापुर से बंधे होते हैं लेकिन जब दिल की बात जुबां पर आती है तो तिरस्कार भी झेलना पड़ता है। इस कड़वी सच्चाई को जानते हुए भी यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
मेरा यह निवेदन रूपी ब्लॉग किसी अखबार विशेष के लिए नहीं, बल्कि हर अखबार के लिए है।
हो सकता है कि मेरे इस दुस्साहस को कोई भी अखबार मालिक, संपादक और मैनेजर माफ नहीं करेंगे, मुझे पत्रकारिता जमात से तिरस्कृत भी किया जा सकता है।
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
कोरोना महामारी विकराल रूप ले चुकी है। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। रोज अनेकों लोग कोरोना के शिकार होकर दुनिया छोड़ रहे हैं। किसी का जवान बेटा, किसी के माता-पिता, किसी की बहन असमय ही काल कलवित हो रहे हैं। रोज किसी ना किसी परिचित या नाते-रिश्तेदार के घर मातम छा जाने की खबर सुनाई देती है। ऐसी स्थिति में अपने-पराए भी दुख जताते हैं। अखबार भी उठावनों से रंगे नजर आने लगे हैं। इन दिनों तो उठावनों के दो-दो पेज भरे हुए आ रहे हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से मेरा देश-प्रदेश के सभी बड़े अखबार मालिकों, सम्पादकों और मैनेजरों से निवेदन है कि या तो वे कोरोना से देवलोकगमन करने वालों के उठावने छापने पर शोक संतप्त परिवारों से कोई भी राशि नहीं लेकर दुख की इस घड़ी में उन परिवारों के साथ खड़े हों। या फिर उठावने के विज्ञापन से मिलने वाली सारी राशि मुख्यमंत्री कोरोना सहायता कोष या प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा करवाएं, ताकि अपने-अपने खजाने यानी बजट का सारा धन कोरोना से जूझने में लगाने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सहारा मिल सके। यह सरकारें ऐसी राशि चिकित्सा उपकरण, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर खरीदने, ऑक्सीजन सिलेंडर प्लांट लगाने, ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाने और अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने में खर्च कर सकेंगी। यदि अखबार मालिकों, सम्पादकों और मैनेजरों को सरकारों पर भरोसा नहीं हो तो वे यह सभी चिकित्सा उपकरण और साधन अपने स्तर पर खरीद कर अस्पतालों को दान कर सकते हैं। वैसे सभी अखबार मालिक बड़े दयालु, सहृदय, कृपालु, बड़े दिल व बड़ी सोच वाले हैं। वे अपने दिल की आवाज भी सुनेंगे। यदि ऐसा होता है तो निश्चय ही वे महानता का परिचय देंगे।
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