वेक अप कॉल की तरह हैं कोविड-19 जैसी पेन्डेमिक




 नेशनल बायो डायवर्सिटी अथॉरिटी (एनबीए) के चेयरपर्सन डॉ. विनोद बी. माथुर ने कहा है कि कोविड-19 जैसी पेन्डेमिक हमारे लिए वेक अप कॉल की तरह हैं। इसे समझना होगा और भविष्य के लिये सतर्क रहना होगा। डॉ. माथुर शुक्रवार को वन विभाग की ओर से राजस्थान फॉरेस्ट्री एंड वाइल्ड लाइफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में बायो डायवर्सिटी एंड क्लाइमेट चेंज विषय पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला नेचर पॉजिटिव बाय-2030श् में उपस्थितजनों को संबोधित कर रहे थे।


वन विभाग की प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) श्रुति शर्मा के उदबोधन के बाद कार्यशाला में डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ. इंडिया की डायरेक्टर गवनेर्ंस (लॉएंड पॉलिसी) विशेष उप्पल ने सतत विकास के उद्देश्यों और उनके स्थानीयकरण पर विस्तार से जानकारी दी। राज्य सरकार के आयोजना विभाग के सचिव नवीन जैन ने भी सतत विकास लक्ष्य-2030 की प्राप्ति और उनकी प्रगति पर चर्चा की।


नेशनल बायो डायवर्सिटी एक्शन प्लान और स्टेट बायो डायवर्सिटी स्ट्रेटजी एंड एक्शन प्लान पर बोलते हुए डॉ. विनोद बी. माथुर ने कहा कि छोटे-छोटे परिवर्तनों से लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। सतत विकास के उद्देश्यों को केवल बदलाव के लिए हासिल नहीं करना है बल्कि उनकी उपयोगिता समझते हुए लक्ष्य प्राप्ति के प्रयास करने होंगे। डॉ.  माथुर ने बायो डायवर्सिटी फाइनेंस प्लान पर चर्चा करते हुए इसकी उपयोगिता भी बताई। उन्होंने कहा कि प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी नहीं निभाने की वजह से ही आज हम कोविड-19 के बावजूद इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। समझना होगा कि प्रॉति से छेड़छाड़ के क्या परिणाम हो सकते हैं?


उन्होंने कहा कि जरूरी होने के बावजूद जिस तरह से लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं, वैसे ही जैव विविधता और प्रकृति के संरक्षण का महत्व नहीं समझ रहे हैं। सहभागिता के साथ-साथ जैव विविधता का संरक्षण भी आवश्यक है।


आगे बोलते हुए डॉ. माथुर ने कहा कि 1992 में जैव विविधता की शुरुआत हुई। इसके बावजूद बीते वषोर्ं में जैव विविधता को नुकसान पहुंचा। कई प्रजातियों पर भी खतरा है। कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक आपदाएं मानव जाति के लिए वेक अप कॉल की तरह हैं। इसे समझ कर रणनीतियों में बदलाव करना होगा। सतत विकास लक्ष्य-2030 के 17 उद्देश्यों का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय संगठन के साथ-साथ राज्य, जिला और पंचायत स्तर तक की स्थानीय संस्थाओं को इसमें सहभागिता निभानी होगी। इन्हीं के जरिए जैव विविधता और वनों का संरक्षण करते हुए प्रकृति को संतुलित रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति को केवल प्रकृति के लिए नहीं बचाना है बल्कि अपने लिए और भविष्य के लिए बचाने की सोच के साथ काम करने की आवश्यकता है।


राजस्थान स्टेट बायो डायवर्सिटी बोर्ड के चेयरपर्सन और वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास) डॉ. दीप नारायण पाण्डेय ने जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता एक्शन प्लान का जिक्र करते हुए कहा कि सॉर्स नामक वायरस की केवल एक प्रजाति ने पूरी दुनिया को बायो डायवर्सिटी की ताकत और मानव जाति को उसकी हैसियत बता दी है। ऎसी परिस्थितियों के बीच जैव विविधता संरक्षण के लिए काम करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अगर कोविड-19 जैसी बीमारियां को रोकना है तो जैव विविधता को संतुलित रखना होगा। सतत विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने की रणनीति में बायो डायवर्सिटी के तहत आवश्यक बदलाव होने चाहिए ताकि प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन होता रहे।


राजस्थान फॉरेस्ट्री एंड वाइल्ड लाइफ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के निदेशक केसीए अरुण प्रसाद ने भी संबोधन दिया। इंस्टीट्यूट की एडिशनल डायरेक्टर शैलजा देवल ने अतिथियों का परिचय दिया जबकि डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. के को-ऑर्डिनेटर डॉ. अभिषेक भटनागर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

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