अब तो रुके दामों में बढ़ोतरी - प्रेम आनन्दकर
मोटे लोगों के हलक से जनता का धन निकाल कर अर्थव्यवस्था सुधारे सरकार
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार हो रही भारी बढ़ोतरी से आमजन परेशान
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
मैं पहले ही यह स्पष्ट कर देता हूं कि पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दामों में लगातार हो रही बढ़ोतरी को लेकर यह ब्लॉग लिखने के पीछे केंद्र सरकार की आलोचना करने का कोई मकसद नहीं है। यह सफाई इसलिए दी है, क्योंकि हमारे देश में हर बात राजनीति के चश्मे से देखी जाती है। सत्ता में चाहे कोई भी दल हो, सत्तारूढ़ दल के लोग अपने आंख-नाक-कान बंद कर लेते हैं और आमजन के हित में उठाई गई आवाज की आलोचना करना शुरू कर देते हैं। इसलिए मैं ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा। केवल कुछ सवालों के माध्यम से अपनी बात कह रहा हूं। पहला, आखिर ऐसी कौनसी स्थिति-परिस्थिति पैदा हो गई है या हो रही है, जो दाम लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल तेल की कीमतों को लेकर कोई संकट भी नजर नहीं आ रहा है। दूसरा, जब रसोई गैस सिलेंडर आठ सौ रुपए का था, तो सरकार सब्सिडी के पैसे बैंक में रिफंड करती थी। इस परेशानी से निजात पाने के लिए सरकार ने सब्सिडी खत्म कर रसोई गैस के दाम घटा दिए थे। जब यह कर दिया था तो अब धीरे-धीरे दाम क्यों बढ़ाए जा रहे हैं। यानी सब्सिडी खत्म कर रसोई गैस सस्ती करना महज छलावा रहा है, क्योंकि अब सिलेंडर की कीमत फिर से आठ सौ रुपए तक पहुंचने वाली है। तीसरा, माना कि कोरोना की महामारी से लड़ने में सरकार को अपने सारे आर्थिक संसाधन झोंकने पड़े। लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं है कि इसकी भरपाई आमजन की कमरतोड़ कर की जाए। चौथा, यह भरपाई सरकार जमाखोरों, कालाबाजारियों, घूसखोरों, करचोरों और भ्रष्टों की तिजोरियों तक अपने हाथ पहुंचा कर क्यों नहीं कर सकती है। पांचवां, क्या सरकार अन्य साधनों से अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार कर आमजन पर आर्थिक बोझ रोक नहीं सकती है।
आमजन की आवाज उसकी ही भाषा में रखी है। बात सही है या गलत, यह भी सुधिजन बताएंगे। आपकी हर प्रतिक्रिया का स्वागत है।
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