"सूचना का अधिकार" दिवस पर आयोजित हुई राष्ट्रीय वेबीनार
जयपुर, राजस्थान
राजस्थान सरकार शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए संकल्पबद्ध
राजस्थान सरकार आम लोगों की भावना और जन अधिकार कार्यकर्ताओं की मंशा के अनुरूप काम करते हुए संवेदनशील, जवाबदेह और पारदर्शी शासन के लिए संकल्पबद्ध है। सूचना का अधिकार अधिनियम की पालना में स्थापित ‘जन सूचना पोर्टल‘ इसी दिशा में उठाया गया कदम है। आने वाले दिनों में इसके माध्यम से ऎसी व्यवस्था लागू की जाएगी, कि लोगों को किसी विभाग से जानकारी लेने के लिए सूचना आवेदन की आवश्यकता ही नहीं पड़े।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 लागू होने की 15वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक राष्ट्रीय वेबीनार में यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस कानून का लागू होना मामूली बात नहीं है। यूपीए चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी की प्रतिबद्धता और निर्देशन में इस क्रांतिकारी कानून के माध्यम से देश के सभी नागरिकों को सूचना प्राप्त कर तथ्यों को जानने का अधिकार दिया गया है। श्रीमती गांधी तत्कालीन केंद्र सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरपर्सन थीं, जिसमें अरूणा रॉय भी सदस्य के रूप में शामिल थीं।
सूचना का अधिकार लागू होने से शासन में पारदर्शिता बढ़ी
गहलोत ने कहा कि आरटीआई से पूरे देश की शासन व्यवस्था में पारदर्शिता आई। इसके लिए सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं ने संघर्ष किया और कुछ कार्यकर्ताओं को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। उन्होेंने कहा कि भारत की जनता को इस कानून की आवश्यकता थी। दुनिया के दूसरे देशों में भी ऎसे सूचना अधिकार कानून लागू हुए हैं। उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार लागू होने के बाद ग्लोबल आरटीआई इन्डेक्स में एक समय हम विश्व में दूसरे स्थान पर थे, लेकिन वर्ष 2018 आते-आते भारत की रैंकिंग छठे स्थान पर और उसके बाद और भी नीचे आ गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान के जन सूचना पोर्टल की तर्ज पर महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी सूचना पोर्टल तैयार किए जा रहे हैं। इन राज्यों के अधिकारी इसके लिए राजस्थान के अधिकारियों के साथ संपर्क में हैंं, यह राजस्थान के लिए हर्ष का विषय है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जबावदेह प्रशासन के लिए अपने पिछले कार्यकाल में हमारी सरकार ने राजस्थान लोक सेवाओं के प्रदाय की गारंटी अधिनियम, 2011, सुनवाई का अधिकार, 2012 अधिनियम तथा राजस्थान लोक उपापन में पारदर्शिता अधिनियम, 2012 जैसे कानून लागू किए थे।
एक माह में मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त नियुक्त होंगे
मुख्यमंत्री ने आगामी एक माह में राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने और आरटीआई आवेदन के माध्यम से सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया को 31 दिसम्बर तक पूरी तरह ऑनलाइन करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जल्द ही प्रदेश में सोशल ऑडिट के लिए गवर्निंग बॉडी का गठन किया जाएगा और उसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी नामित किया जाएगा। उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान राज्य सरकार द्वारा आम लोगों को दी गई राहत का भी सोशल ऑडिट कराने की घोषणा की।
विधायक कोष, विधानसभा के सवाल-जवाब, पुलिस प्रकरण भी हों सूचना पोर्टल पर
वेबीनार के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन लोकुर ने विधायकों के स्थानीय विकास निधि (एमएलए एलएडी) की जानकारियां, विधानसभा के प्रश्नों के जवाब, अदालतों में लम्बित प्रकरणों की जानकारी और पुलिस एफआईआर के साथ-साथ प्रकरण की जांच के निस्तारण की प्रक्रिया आदि जन सूचना पोर्टल पर उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। उन्होंने प्रदेश में सोशल ऑडिट की व्यवस्था लागू करने और नया जवाबदेही कानून जल्द बनाने की मांग की।
सूचना पोर्टल के जरिए आरटीआई कानून हर व्यक्ति का अधिकार बनेगा
देश के पहले मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि राजस्थान सरकार द्वारा शुरू किए गए जन सूचना पोर्टल के जरिए आरटीआई कानून सही मायनों में हर व्यक्ति का अधिकार बन सकता है। उन्होंने कहा कि इस पोर्टल से कानून की धारा-4 को सशक्त रूप में लागू करने का मकसद पूरा होता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को अधिकाधिक जानकारियां कम से कम मानव हस्तक्षेप के मिल सके। उन्होंने पोर्टल और वेबसाइट पर सूचनाओं का लगातार अपडेट करने पर भी जोर दिया।
दूसरी राज्य सरकारें भी शुरू करें ‘जनता पोर्टल‘
वेबीनार के दौरान पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने भी जन सूचना पोर्टल की तारीफ की और कहा कि इसने आरटीआई अधिनियम की धारा-4 को जीवंत कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह पोर्टल लोगों को सशक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हो सकता है। उन्होेंने इसे ‘जनता पोर्टल‘ नाम देते हुए कहा कि दूसरे राज्यों की सरकारों को भी ऎसे पोर्टल स्थापित करने चाहिएं।
अपीलें लम्बित रहने से सूचना का अधिकार बेमानी
एक अन्य पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने प्रदेश के जन सूचना पोर्टल और आरटीआई आवेदनों को ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जानकारी राज्य के मुख्य सचिव के माध्यम से दूसरे राज्यों के साथ साझा करने और ऎसे पोर्टल शुरू करने में मदद करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि सूचना आवेदनों पर अपील के बाद प्रकरणों के आयोग में पहुंच जाने पर उनका अधिक समय तक लम्बित रहने से सूचना का अधिकार बेमानी हो जाता है। इसके लिए सरकारों को चाहिए कि वे समय पर समुचित संख्या में सूचना आयुक्त नियुक्त करें।
कोविड-19 के दौरान दी गई राहत के सोशल ऑडिट हो
जानी-मानी सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्रीमती अरूणा रॉय ने शासन व्यवस्था में जवाबदेही के लिए पारदर्शिता नीति बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जन सूचना पोर्टल सरकार के साथ लोगों के संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसकी व्यवस्था को दुरूस्त रखने के लिए राज्य स्तर पर एक सलाहकार समूह अथवा परिषद का गठन होना चाहिए। उन्होंने महात्मा गांधी नरेगा और कोविड-19 के दौरान दी गई राहत के सोशल ऑडिट का सुझाव दिया।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता निखिल डे ने राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के साथ सूचना के अधिकार पर संवाद (आरटीआई संवाद) की व्यवस्था शुरू करने की मांग की। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार की दिशा में अगला कदम जवाबदेही कानून है। उन्होंंने इसे जल्द से जल्द लागू करने का सुझाव दिया और कहा कि जल्द ही राजस्थान देश का पहला राज्य होगा, जो जवाबदेही कानून लागू करेगा।
मानवाधिकार कार्यकर्ता सुकविता श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य सरकार की मंशा शासन में पारदर्शिता लाने की है। यही भावना देश के संविधान की भी है। उन्होंने कहा कि सरकार को इसके अनुरूप कार्य करते हुए सूचना आयुक्तों सहित अन्य आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकारों के प्रति सकारात्मक समझ रखने वाले लोगों को नामित करना चाहिए।
कार्यकर्ताओं के साथ संवाद मिलती है संघर्ष करने की प्रेरणा
मध्यप्रदेश से वेबीनार में जुड़ी सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुरोली शिवहरे ने राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय वेबीनार के माध्यम से सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ संवाद एक बहुत अच्छी पहल है। उन्होंने कहा कि ऎसे आयोजनों से दूसरे राज्यों के कार्यकर्ताओं को संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में जन सूचना पोर्टल को सूचना अधिकार कानून की धारा-4 की अनुपालना का अद्वितीय उदाहरण बताया।
गुजरात की सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुपंक्ति जोग ने कहा कि आज देश ऎसे दौर में है, जहां सवाल करना ही गलत माना जाता है। ऎसे समय में सामाजिक कार्यकर्ताओं को संवाद के लिए आमंत्रित करना सराहनीय है।
अजमेर की जवाजा पंचायत समिति से आरटीआई कार्यकर्ता श्रीमती सुशीला देवी ने कहा कि सूचना का अधिकार लम्बे समय तक आंदोलनों और धरनों के बाद लोगों को कानून के रूप मिला है। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री गहलोत का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह एक ऎसा अधिकार है जो लोगाें के जीने के अधिकार को मजबूती देता है। उन्होंने कहा कि यह महिला सशक्तीकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। सरकारी योजनाओं की जानकारी पारदर्शी तरीके से जन सूचना पोर्टल पर उपलब्ध कराई गई है, जिससे अशिक्षित और कम शिक्षित महिलाओं को भी आसानी से जानकारी मिल जाती है।
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी राम लुभाया ने कहा कि राजस्थान सरकार द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन आरटीआई की व्यवस्था और जन सूचना पोर्टल पूरे देश के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों को जन सूचना पोर्टल पर ज्यादा से ज्यादा जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए। साथ ही, विभागों के जन सूचना अधिकारियों और अपीलीय अधिकारियों को अधिक संवेदनशील होकर जानकारी साझा करनी चाहिए, ताकि अपीलों की संख्या कम हो सके।
इस दौरान प्रशासनिक सुधार एवं समन्वय विभाग के प्रमुख शासन सचिव अश्विनी भगत ने राज्य सरकार की 12 अक्टूबर 2005 से लेकर 15 वर्ष की सूचना अधिकार यात्रा पर प्रस्तुतीकरण दिया। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग के प्रमुख शासन सचिव दिनेश कुमार ने जन सूचना पोर्टल के बारे में प्रस्तुतीकरण दिया। कार्यक्रम में विभिन्न विभागाें के वरिष्ठ अधिकारी तथा देश के विभिन्न हिस्सों से सूचना अधिकार कार्यकर्ता एवं आम जन शामिल हुए।
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