अशोक गहलोत सरकार की कार्यवाही क्या पत्रकारों को डराने के लिए है ?
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फोन टेपिंग की गलत खबर चलाने के आरोप में आज तक न्यूज चैनल के संवाददाता शरत कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज।
अशोक गहलोत सरकार की यह कार्यवाही क्या पत्रकारों को डराने के लिए है?
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7 अक्टूबर को राजस्थान पत्रिका में एक चांैकाने वाली खबर प्रकाशित हुई है। इस खबर में बताया गया है कि जयपुर के विधायकपुरी थाने में पत्रकार शरत कुमार और लोकेन्द्र सिंह के खिलाफ आईपीसी और आईटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। यह मुकदमा साइबर थानाधिकारी ने दर्ज करवाया और अब इस मामले की जांच विधायकपुरी थानाधिकारी ओम प्रकाश मातवा कर रहे हैं। पत्रिका की खबर में यह भी बताया गया कि इस मुकदमें के बारे में क्षेत्र के डीसीपी मनोज चौधरी को कोई जानकारी नहीं है। दोनों पत्रकारों पर आरोप लगाया गया कि 7 अगस्त 2020 को जब अनेक विधायक जैसलमेर की होटल में मौजूद थे, तब सरकार द्वारा विधायकों के मोबाइल फोन टेप करने की खबरें चलाई गई, जबकि ऐसी खबरें सही नहीं थी। पत्रकार लोकेन्द्र सिंह ने अपने मोबाइल से वाट्सएप के माध्यम से ऐसी खबरें पोस्ट की है। इसी आधार पर पत्रकार शरत कुमार ने खबरों का प्रसारण किया। सबूत के बतौर लोकेन्द्र सिंह ने वाट्सएप पोस्ट आदि प्रस्तुत किए गए हैं। सब जानते हैं कि शरत कुमार आज तक न्यूज चैनल के राजस्थान प्रभारी हैं। इंडिया टूडे ग्रुप ने शरत को न्यूज़ एडिटर का पद दे रखा है। जबकि लोकेन्द्र सिंह पूर्व में एएनआई न्यूज एजेंसी के संवाददाता रह चुके हैं तथा मौजूदा सयम में एसवाईजेड न्यूज एजेंसी चलाते हैं। यही न्यूज एजेंसी पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का भी प्रचार प्रसार करती है। पायलट के प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष और डिप्टी सीएम रहते हुए लोकेन्द्र को ही पायलट का अधिकृत प्रवक्ता माना जाता था। पायलट की ओर से लोकेन्द्र ही अखबरों और न्यूज चैनलों को खबरें भेजते थे। अब जब इन दोनों पत्रकारों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, तब यह सवाल उठता है कि क्या यह कार्यवाही पत्रकारों को डराने के लिए है? सवाल यह भी है कि मुकदमा सिर्फ आज तक संवाददाता और पायलट के मीडिया प्रभारी के विरुद्ध ही क्यों दर्ज किया गया? जबकि विधयाकों के फोन टेपिंग की खबरें अधिकांश अखबारों एवं न्यूज चैनलों पर प्रसारित हुई थी। यह बात अलग है कि शरत कुमार ने सोशल मीडिया पर आजतक के न्यूज पोर्टल पर अतिरिक्त खबरें चलाईं। ऐसी खबरों में सचिन पायलट को प्रमुखता दी गई। हालांकि सभी मीडिया घरों ने फोन टेपिंग के मामले में सरकार का भी पक्ष रखा था। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों के फोन टेपिंग से इंकार किया था। सीएम का बयान भी प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित हुाअ। ताजा मामले ने प्रदेश भर के पत्रकारों को सतर्क कर दिया है। इस मुकदमे से यह बात भी प्रतीत होती है कि सीएम गहलोत और सचिन पायलट का आपसी विवाद समाप्त नहीं हुआ है। भले ही एफआईआर में लोकेन्द्र सिंह को नामजद किया गया हो, लेकिन निशाना और कहीं है।
प्रदेश के पत्रकारों के सामने चुनौती:
जिस तरीके से दो पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उससे राजस्थान के पत्रकारों के सामने चुनौती खड़ी हो गई है। अब जब न्यूज चैनलों और अखबारों में गला काट प्रतिस्पद्र्धा है तब फील्ड में काम करने वाले पत्रकारों की चुनौती और बढ़ जाती है। निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता का दम भरने वाले मीडिया घराने के मालिक माने या नहीं लेकिन सरकार के विज्ञापनों का भी असर होता है। मालिकों के हाथ टेबल के नीचे से मुख्यमंत्री और बड़े मंत्रियों से मिले होते हैं। जब फोन टेपिंग की खबरें सभी ने चलाई थीं, तब देखना होगा कि आज तक के शरत कुमार के साथ कितने पत्रकार आते हैं?
(एस.पी.मित्तल) (07-10-2020)
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