रोता हुआ जाता है कोई - हनुमान प्रसाद जांगिड़
रोता हुआ जाता है कोई - हनुमान प्रसाद जांगिड़
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कौन निर्धनता में यूँ निर्मोह हो जाता है कोई
हृदय तोड़ मेरे समक्ष रोता हुआ जाता है कोई
परिश्रम से दो जून की रोटी पाने आता है कोई
तेरे कोष भर भूखा ही रोता हुआ जाता है कोई
कनखियों से देख मुझे,मेरे प्रश्न पे गला भर आया
क्या नाते स्वार्थ के थे,इन्हें ऐसे निभाता है कोई
उन्हें हमनें वर्षो का धन,अपने परिश्रम से दिया
स्नेह न समझ सके तभी रोता हुआ जाता है कोई
सूरत से पाली किसी ने नापी कोई पटना भी गया
क्या सहस्त्र मिलों दूरी पर यूँ निकल जाता है कोई
राज समाज के संकल्प बहुतेरे भूखा न रहेगा कोई
कहाँ खाने की रोटी पटरियों पे छोड़ जाता है कोई
निर्धनों अश्रु के मूल्य चलचित्र आँक लेता है कोई
खरबों के समाचार,हजारों भी व्यय न करता कोई
अनंत काल से पीड़ित की पीड़ा वर्तमान देख रहा
समझ लेता समाधान तो,रोता हुआ जाता है कोई
विषाद,अवसाद से ग्रसित,भूखा भी मरता है कोई
देख रहा हूँ,देख रहे हो रोता हुआ जाता है कोई
रोता हुआ जाता है कोई - हनुमान प्रसाद जांगिड़
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