राष्ट्रपति ने वर्चुअल तरीके से राष्ट्रीय सेवा स्कीम पुरस्कार किये प्रदान

मानवता और राष्ट्र की सेवा हमारी मूल्य प्रणाली की परंपरा रही है : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद



फाइल फोटो 


मानवता और राष्ट्र की सेवा हमारी मूल्य प्रणाली की परंपरा रही है। इसकी जड़ें हमारी परंपरा में दबी हैं जहां यह कहा जाता रहा है कि सेवा उद्देश्यों को समझना और उन्हें आंकना कठिन है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज (24 सितंबर, 2020) नई दिल्ली में राष्ट्रीय सेवा स्कीम पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर अपने संबोधन में उक्त बातें कहीं।



राष्ट्रपति कोविंद ने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि सेवा केवल मानवों के प्रति नहीं होनी चाहिए बल्कि प्रकृति के प्रति भी होनी चाहिए। यह दुहराते हुए कि राष्ट्रीय सेवा स्कीम महात्मा गांधी की 100वीं जयंती पर आरंभ की गई थी, उन्होंने कहा कि आज भी इस योजना की असीम प्रासंगिकता बनी हुई है। उन्होंने कोविड महामारी के चुनौतीपूर्ण समय में भी पुरस्कारों को प्रदान किए जाने की सराहना की तथा युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के प्रयासों की प्रशंसा की।



एनएसएस के बारे में चर्चा करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने टिप्पणी की कि यह युवाओं को विभिन्न उपायों के जरिये सामुदायिक सेवा के लिए स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है जोकि ‘मैं नहीं बल्कि आप‘ के इसके आदर्श वाक्य के अनुकूल है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य कि विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के 40 लाख छात्र इस नेक योजना से जुड़े हैं, एक उत्साहवर्द्धक परिघटना है और यह आश्वस्त भी करता है कि हमारे देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है।



युवा स्वयंसेवकों द्वारा संचालित गतिविधियों पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि स्वयंसेवक कोविड-19 के समय सामाजिक दूरी तथा मास्क के समुचित उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाने में मददगार थे। ये स्वयंसेवक इस दौरान क्वारांटाइन तथा आइसोलेशन में रखे गए रोगियों को भोजन तथा अन्य अपेक्षित उपयोगी उत्पाद उपलब्ध कराने में भी सहायक थे। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, इन स्वयंसेवकों ने बाढ़ तथा भूकंप पीड़ितों को राहत एवं पुनर्वास उपलब्ध कराने में भी हमेशा खुले दिल से सहायता की है।



राष्ट्रपति कोविंद ने इसकी भी सराहना की कि 42 पुरस्कृतों में से 14 लड़कियां हैं जो एक आश्वस्त करने वाली तथा उत्साहवर्द्धक बात है। हमारे देश की महिलायें राष्ट्र की सेवा करने में सावित्रीबाई फुले, कस्तूरबा गांधी एवं मदर टेरेसा की परंपरा का अनुपालन कर रही हैं।


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