नो स्कुल नो फ़ीस, आखिर क्यों ?


अवनीश विल्सन 


नो स्कुल नो फ़ीस, आखिर क्यों ?



कोरोना वायरस ने कुछ ही समय में पूरी दुनिया के नियम व कायदे कानूनों को बदल डाला l इसका सबसे ज्यादा असर शिक्षा जगत में देखने को मिला है l 22 मार्च को एक दिन के जनता कर्फ्यू के बाद 26 मार्च से पुरे देश में सम्पूर्ण लॉक डाउन लागू कर दिया गया l आमतौर पर 1 अप्रैल से स्कुलो का नया सेशन शुरू होता है परन्तु इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण स्कुलो का सेशन फिजिकल रूप से आज दिनांक तक भी शुरू नहीं हो सका है l



वर्तमान समय में शिक्षा इनती महत्वपूर्ण है की इसके बिना एक बच्चे का जीवन व भविष्य अधूरा है l इसी शिक्षा की कमी को पूरा करने के लिए शिक्षा जगत के लोगो ने बच्चो को शिक्षा देने के लिए ऑनलाइन प्रणाली शुरू की जिसके द्वारा घर बैठे बच्चो को कोरोना संक्रमण काल में भी शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है l हाँ यह बात भी स्वीकार योग्य है की जिस तरह से शिक्षा स्कुलो में दी जाती है उस तरह से शिक्षा ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से नहीं दी जा सकती परन्तु अंग्रेजी की एक कहावत है "Something is better than nothing" कुछ नहीं से कुछ अच्छा है l ऐसे में अब यह विचार योग्य बात है की यदि एक वर्ष बच्चे को शिक्षा नहीं दी जाए तो बच्चा शिक्षा के मामले में 1 वर्ष पिछड जाएगा इसीलिये कोरोना संक्रमण काल में जो ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली चल रही है वो बच्चो के हित की है l बस इस ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली में स्कुलो/टीचर्स को बच्चो को सिर्फ इतना ही पढाना चाहिए या इतना ही होमवर्क देना चाहिए की बच्चे व उसके अभिभावक को ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली बोझ न लगे l    



कोरोना संक्रमण के कारण लगे लॉक डाउन ने कई देशो की अर्थव्यवस्था को तोड़ कर रख़ दिया जिसमे हमारा भारत देश भी शामिल है l लॉक डाउन के कारण कई लोगो की नौकरी चली गयी तो कई लोगो को अपने व्यवसाय में काफी आर्थिक नुक्सान का सामना करना पड़ा और इस लॉक डाउन अवधि में सबसे ज्यादा नुकसान रोज़ कमाने वालो को हुआ है l इसी कड़ी में जब स्कुल प्रशासन द्वारा अभिभावकों से स्कुल फ़ीस की मांग की गयी तो कई अभिभावकों द्वारा उक्त आर्थिक परेशानियाँ गिनाकर स्कुल फ़ीस देने में असमर्थता ज़ाहिर की गयी l और यह बात सही भी है की जब लॉक डाउन के दौरान कुछ अभिभावकों की कोई कमाई ही नहीं हुई तो फिर वह अभिभावक फ़ीस कैसे भरे ?



परन्तु उक्त सारी बातो पर गौर करने के बाद हमें यहाँ एक बात पर और गौर करना चाहिए की जिस तरह से कुछ बच्चो के अभिभावकों को लॉक डाउन अवधि में आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा व कुछ लोगो की कुछ भी कमाई नहीं हुई ठीक उसी तरह से हमें यहाँ शिक्षा जगत के लोगो के बारे में भी सोचना चाहिए व ध्यान रखना चाहिए की क्या उन्हें लॉक डाउन अवधि में वेतन (सेलेरी) का भुगतान हुआ या नहीं ? क्योकि जिस तरह से अभिभावकों के घर परिवार के आर्थिक खर्चे है ठीक उसी तरह से शिक्षा जगत से जुड़े लोगो के भी घर परिवार के भी आर्थिक खर्चे है जिसकी उन्हें पूर्ति करनी होती है l



स्कूली बच्चो के कुछ अभिभावक निम्न वर्ग से होते है तो कुछ माध्यम वर्ग से व कुछ सक्षम वर्ग से होते है l जब किसी बच्चे का किसी स्कुल में एडमिशन होता है तो स्कुल द्वारा उस बच्चे के अभिभावकों से स्कुल के एडमिशन फॉर्म में उनके आर्थिक/कमाई के स्रोत की जानकारी भी ली जाती है तो अब वर्तमान में सरकारों को कोई ऐसी प्रणाली लागू करनी चाहिए की यदि किसी बच्चे का अभिभावक किसी सरकारी/अर्धसरकारी/बड़े व्यवसाय/सक्षम क्षेत्र में है तो उससे फ़ीस ली जाए और यदि किसी बच्चे का अभिभावक यदि सचमुच आर्थिक रूप से असक्षम है तो ऐसे बच्चो की स्कुल फ़ीस माफ़ भी की जाए l तथा इसी के साथ साथ जब लॉक डाउन अवधि में बच्चे ने घर बैठकर ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से पढाई की तो बच्चो से सिर्फ स्कुल की ट्यूशन फ़ीस ही ली जाए और अन्य फ़ीस जैसे की स्मार्ट क्लास फ़ीस/स्कुल मेंटेनेंस फ़ीस/कम्पूटर फ़ीस आदि माफ़ की जाए l   


जैसे शिक्षा जगत के अलावा अन्य किसी व्यक्ति को मासिक वेतन दिया जाना आवश्यक है ठीक उसी तरह से शिक्षा जगत से जुड़े व्यक्तियों को भी मासिक वेतन दिया जाना अति आवश्यक है क्योकि वह शिक्षा के द्वारा हमारे बच्चो का भविष्य निखार रहे है l 


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