मूंछ की लड़ाई, खोद रहे खाई - प्रेम आनंदकर

मूंछ की लड़ाई, खोद रहे खाई


राजस्थान के नेताओं की लड़ाई में निपट रही है कांग्रेस


अगले कई सालों तक इसका खामियाजा भोगेंगे कार्यकर्ता


प्रेम आनन्दकर, अजमेर।



राजस्थान में "मूंछ की लड़ाई" कहावत प्राचीन और रजवाड़ों के समय से प्रचलित है। भले ही खून की नदियां बह जाती थीं और रियासतें-सियासतें लुट-पिट जाती थीं, लेकिन मजाल है, मूंछ नीची हो जाए। चाहे कुछ भी हो जाए, सब कुछ दांव पर लग जाए, खत्म हो जाए, सहन कर लेते थे, लेकिन मूंछ नीची नहीं होने देते थे। ऐसा ही कुछ इन दिनों राजस्थान कांग्रेस की सरकार और संगठन में हो रहा है। भाई आखिर रजवाड़ों का प्रदेश है, तो यहां का खून और पानी तो जोर मारेगा ही ना। लेकिन यह बात सत्ता व संगठन के नुमाइंदों को समझ में नहीं आ रही है कि अब समय झुककर और मिलकर चलने का है। रजवाड़ों के समय तो राजा-महाराजा अपनी प्रजा के बूते वह सब फिर पा लेते थे, जो युद्ध में खोते थे। एक रियासत खोते थे, तो उसके बदले में चार रियासतों को फतह करते थे। लेकिन आज खोने के सिवाय कुछ भी नहीं है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच जो सियासी जंग चल रही है, उससे इन दोनों नेताओं को कोई बहुत बड़ा नफा-नुकसान हो या नहीं, सरकार कायम रहे या नहीं, लेकिन इतना अवश्य माना जा सकता है कि इस जंग का भविष्य में अनेक सालों तक कांग्रेस और कार्यकर्ताओं को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अब बात करें कांग्रेस के आला नेताओं की। वे बयान दे रहे हैं कि कोई भले ही पार्टी से जाता हो तो जाए, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। तो साहब सुन लीजिए, यह चटकारे वाली बातें केवल कहने-सुनने में अच्छी लग सकती हैं। जब अपने परिवार का कोई सदस्य घर छोड़कर चला जाता है, तो उस पूरे परिवार पर असर जरूर पड़ता है। राजस्थान में एक और अच्छी कहावत यह भी है, "बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की", यानी एकता ही संगठन या संस्था की ताकत होती है। कोई बात नहीं, गलती हरेक इंसान से होती है। शायद ऐसा कोई व्यक्ति होगा, जिससे जीवन में कभी कोई गलती नहीं हुई हो। मिल-बैठकर बातचीत कर लीजिए। कुछ अपनी कहिए, कुछ उनकी सुनिए। क्या धरा है, फिजूल मूंछों पर ताव देने में। अपनी कोई गलती हो तो मान लीजिए, उनकी गलती हो तो अहसास करा दीजिए। वैसे भी हमें अभी कोरोना से लम्बी जंग लड़नी है और लोगों का जीवन बचाना है लेकिन यह तभी संभव होगा, जब सत्ता-संगठन का घमासान बंद हो जाएगा।


प्रेम आनन्दकर


अजमेर, राजस्थान।


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