किधर है लोकतंत्र - प्रेम आनंदकर


  • किधर है लोकतंत्र

  • जिसकी लाठी, उसकी भैंस

  • लोकतंत्र के नाम केवल जनता पिसती है



प्रेम आनन्दकर, अजमेर।


लोकतंत्र की हत्या हो रही है या हत्या की जा रही है, लोकतंत्र खतरे में है, लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, यह वह जुमले हैं, जो अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा उस समय अलापे जाते हैं, जब कोई सियासी घमासान मचा हुआ हो। लेकिन अव्वल तो सवाल यह है कि आखिर लोकतंत्र है कहां? यदि हमारे भारत में लोकतंत्र की परवाह और रक्षा की जाती तो शायद यह जुमले अलापने की नौबत ही नहीं आती। हम आखिर किस लोकतंत्र की बात करते हैं। यहां तो "जिसकी लाठी, उसकी भैंस" ही असली लोकतंत्र का रूप ले चुकी है। भले ही राज्यपाल का पद गरिमामय और पूरी तरह संवैधानिक होता है, लेकिन इस पद पर बैठे व्यक्ति किसी ना किसी राजनीतिक दल से पहले जुड़े हुए रहे होते हैं, तो विचारधारा और मानसिकता वही रहती है। इसलिए वे अक्सर अपनी विचारधारा के विपरीत वाली सरकार की नाक में नकेल डालने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं। जब ऐसा होता है, तो लोकतंत्र बचाने के लिए लड़ाई लड़ने की दुहाई दी जाती है, जैसाकि इन दिनों राजस्थान में कांग्रेस की सरकार दे रही है। लेकिन सवाल यह भी है कि जिस सरकार की जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाए रखने की हो, वही अगर धरने पर बैठ जाए, तो फिर क्या किया व कहा जाए, किससे कानून- व्यवस्था की पालना करने-कराने की उम्मीद की जाए। राजभवन में यदि किसी अन्य संगठन के कार्यकर्ताओं ने धरना दिया होता, तो सरकार के आदेश पर पुलिस चमड़ा उधेड़ देती। क्या यही लोकतंत्र है कि सरकार धरने पर बैठ जाए। यदि यह सही है, तो फिर कभी किसी संगठन को धरना देने से रोका क्यों जाता है, जबकि धरना देना और प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक अधिकार है। क्या यही लोकतंत्र है कि कोई सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए आग्रह करे, तो राज्यपाल उसे ठुकरा दें। राज्यपाल की इस तरह की नामंजूरी और मुख्यमंत्री सहित पूरी सरकार के धरने पर बैठने की घटना भी शायद पहली बार हुई है। राजनीतिक दलों के लिए उनकी सुविधा के अनुसार लोकतंत्र के मायने निकाल लिए जाते हैं और अपने स्वार्थों के अनुसार दुहाई दी जाती है। असल में इस छद्दम लोकतंत्र की लड़ाई और दुहाई में जनता पिसती है और उसे ही डांवाडोल सियासी माहौल का खामियाजा भुगतना पड़ता है। यही सब इन दिनों राजस्थान की जनता भुगत रही है। राजस्थान इन दिनों सियासी संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। इस संक्रमण के नतीजे क्या रहते हैं, यह आने वाला समय बताएगा।


प्रेम आनन्दकर


अजमेर, राजस्थान।


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