अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – अलीशा पॉल, क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – अलीशा पॉल, क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट
तुम कितना बोलती हो ?
तुम मोटी क्यों हो रही हो ?
तुम इतना जोर से क्यों हंसती हो ?
तुम लड़की हो और लड़कियां ऐसे नहीं बैठती हैं l
तुम लड़कियां इतना बाहर क्यों घूमती हो ?
तुम ऐसे कपडे क्यों पहनती हो ?
अरे तुमने अभी तक शादी क्यों नहीं कि ? लोग क्या कहेंगे ? सोसाइटी क्या कहेगी ?
आज पूरा विश्व अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है तथा आज हम 21वी सदी में जी रहे है परन्तु आज भी हम महिलाएं समाज में उक्त दिए गए सवालो का सामना करती है और ऐसी मानसिकता से लड़कियों को लड़ना पड़ता हैं और सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है की हम महिलाएं भी लोगो की टिप्पणियों के आधार पर आपने आप की आलोचना करती है l क्या यार मैं सच्ची में मोटी हो गई हु, मेरा चेहरा कितना गंदा हो गया है, मैं यह नहीं कर सकती वगैरा-वगैरा l क्या आप यह जानती हैं की आज कितनी महिलाएं समाज के अजीब और गरीब निर्णय और टिपण्णी के कारण ही बॉडी डीस्मोर्फिया, डिप्रेशन व एंजाइटी जैसे मेंटल डिसऑर्डर से लड़ रही हैं l क्या कभी हमने अपने आप को स्वीकार किया है की मैं जैसी भी हूं बहुत सुंदर हूं, मैं जैसी भी हु बहुत अच्छी हु l आप अपने आप से प्रेम करना आरंभ कीजिए, अपने आप को समय दीजिए, अपने आप को तोहफे दीजिए l
जीवन में सबको आगे बढ़ने के लिए एक मोटिवेशन चाहिए होता है, हम महिलाएं खुद अपने लिए एक मोटिवेशन व इंस्पिरेशन बने l हम खुद आज से अपने आप को मोटिवेट करें व सेल्फ इन्स्पिरेट करे l हमारा सेल्फ मोटिवेशन कहां है, क्यों आज हम खुद अपनी ही कीमत भूलकर बस दूसरों को खुश करने में लगी हुई हैं व दुसरो के कहे शब्दों के आधार पर हम अपनी ज़िन्दगी जी रही है l जब तक हम बस यही सोचती रहेंगी कि दूसरे क्या सोचेंगे तब तक यह जिंदगी हमारी नहीं l अगर लोग बोलते हैं तुम यह नहीं कर पाओगी यह उनकी सोच है आप अपनी योग्यताओं को पहचानिए और लोगों के शब्दों से अपने आप का आकलन मत कीजिये l जिंदगी में कुछ अलग व बड़ा कीजिये और आगे बढिए l
अंत में मैं बस इतना ही कहूंगी कि आज अगर हम दूसरों का नजरिया अपने लिए नहीं बदल सकती हैं तो खुद तो अपना नजरिया खुद के लिए बदल ही सकती हैं l
हां मैं कर सकती हूं!!!
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