वेद दास नहीं, स्वामी बनाता है। जीवन में सबसे बड़ा अभिशाप निर्धनता है। अजमेर में दो दिवसीय मानव निर्माण शिविर सम्पन्न।
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वेद दास नहीं, स्वामी बनाता है। जीवन में सबसे बड़ा अभिशाप निर्धनता है। अजमेर में दो दिवसीय मानव निर्माण शिविर सम्पन्न।===========================================
मानव निर्माण के लिए यूं तो कई बरस चाहिए, लेकिन मानव निर्माण की सीख युग पुरूष स्वामी दयानंद की निर्वाण स्थली पर दी जाए तो उसका विशेष महत्व होता है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने अजमेर में जयपुर रोड स्थित भिनाय कोठी में अपने प्राण त्यागे थे। जिस तख्त पर स्वामीजी ने अंतिम सांस ली, उसे आज भी महर्षि दयानंद के स्मारक न्यास ने सुरक्षित रखा हुआ है। न्यास के कार्यकारी प्रधान डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने बताया कि युवाओं की समस्याओं और उनके मन में उठने वाले सवालों को लेकर ही दो दिवसीय मानव निर्माण शिविर का आयोजन किया गया। 29 दिसंबर को इस आवासीय शिविर का समापन हुआ। शिविर में भाग लेने वाले युवक-युवतियों के आवास और भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था की गई। यह शिविर युवाओं के लिए प्रेरणादायक बने इसके लिए देशभर के विद्वानों को शिविर में आमंत्रित किया गया। नई दिल्ली के आचार्य जितेन्द्र, आचार्य लोकनाथ, पानीपत के सुलेख आर्य, यमुनानगर के धनवंत, रघुवीर सिंह तथा अजमेर के पंडित रामस्वरूप और पंडित नवीन मिश्र आदि ने अपने प्रवचनों के माध्यम से युवाओं को नई दिशा दी।
निर्धनता सबसे बड़ा अभिशाप :
शिविर के समापन पर आचार्य जितेन्द्र ने कहा कि जीवन में सबसे बड़ा अभिशाप निर्धनता है। निर्धनता की वजह से मनुष्य का जीवन बर्बाद हो जाता है। वेद एकमात्र शास्त्र है जो मनुष्य को दास नहीं बल्कि स्वामी बनाते हैं। स्वामी दयानंद ने वेदों का अध्ययन करने के बाद भी निर्धनता के खिलाफ लंबा अभियान चलाया। उन्होंने कहा कि समाज के युग पुरूष स्वामी दयानंद अपने जीवन में दो बार रोए। पहली बार अपने चाचा की मृत्यु पर तथा दूसरी बार स्वामी दयानंद की आंखों में आंसू जब आए जब एक महिला अपने मृत बच्चे को नदी में प्रवाह कर रही थी। मृत बच्चे को नदी के पानी में छोडऩे से पहले महिला ने उस कपड़े को अपने पास रख लिया, जिसमें बच्चे का शव लिपटा हुआ था। तब स्वामी दयानंद ने महिला से पूछा कि आपने शव पर से कपड़ा क्यों हटाया? इस पर महिला ने कहा कि यह कपड़ा मेरी साड़ी का आधा भाग है, जिससे मैं अपना तन भी ढंकती हूं। यदि बच्चे के शव के साथ साड़ी का आधा भाग भी पानी में बहा देती तो मेरे लिए तन को ढंकना मुश्किल होता। तब स्वामी दयानंद को निर्धनता की हकीकत का अहसास हुआ। जिस देश में ऐसी निर्धनता हो, उस देश में गरीबी का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में 40 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। सरकार ने ऐसे लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए बीपीएल कार्ड भी दे रखा है। आचार्य जितेन्द्र ने कहा कि हम यदि वेदों का अध्ययन करें तो निर्धनता से बाहर निकल सकते हैं। शिविर में आर्य विद्वान पंडित रामस्वरूप ने कहा कि मनुष्य में चरित्र बल होना जरूरी है। चरित्र बल के दम पर किसी भी स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है। स्वामी दयानंद ने अपने चरित्र बल के दम पर ही समाज को नई दिशा दी। भौतिकवाद के इस दौर में भी स्वामी दयानंद के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। शिविर में आर्य विद्वान और कार्यक्रम के संयोजक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने कहा कि युवाओं को यह देखना चाहिए कि राष्ट्र के प्रति उनका क्या कर्तव्य है, युवा ही देश का भविष्य है। भारत के युवाओं में वह क्षमता है जिससे भारत को फिर से सोने की चिडिय़ा बनाया जा सकता है। शिविर को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राहुल आर्य और पंडित सत्यनारायण शर्मा ने सभी अतिथियों का आभार प्रकट किया। अजमेर स्थित महर्षि दयानंद निर्वाण स्मारक न्यास की गतिविधियों के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829070186 पर डॉ. श्रीगोपाल बाहेती से ली जा सकती है।
एस.पी.मित्तल) (29-12-19)
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